Tuesday, July 6, 2010

फिर वही बीमारी ..........

दिल्ली के एक इलाके में पानी के अभाव पर बस्तीवाले प्रदर्शन कर रहे थे ... पानी की बर्बादी हमारा अधिकार है तो पानी कम आये तो घटियापन पर उतर आने में भी हम पीछे नहीं रहते .....शायद टीवी चैनेल पर आपने भी देखा होगा बस्ती के युवा पत्थरबाजी कर रहे थे ....वे आनंद ले रहे थे ,सड़क पर धूम मचा रहे थे ,मुसाफिरों को परेशान कर रहे थे..... महिलाओ की कारों को damage किया ......... प्रदर्शनकारियो में १८ से ३० साल के लोग ही थे ...वे अपनी ऊर्जा का प्रदर्शन कर रहे थे ...ये तरीका ही शायद कामयाब होता होगा आज के भारत में !!
२१ वीं
सदी का भारत कहाँ खडा है आज ?
ज़रा सोचिये !!

भारत बंद .............

भारत बंद के दौरान देश के विभिन्न इलाकों में ज़बरदस्त तोड़फोड़, आगजनी और फसाद हुआ.... अर्थव्यवस्था को हजारों करोड़ रूपैयों का नुक्सान हुआ... बंद समर्थक राजनीतिक दल क्या वास्तव में आम जनता की परेशानियों और बढ़ती मंहगाई से ताल्लुक रखते हैं ? क्या उनको देश की भी चिंता है ? ये सच है की कांग्रेस ने हमेशां मंहगाई बढाई है लेकिन प्रदर्शन का ये कौनसा तरीका है ? जनता के नुमाइंदे अपने कार्यकर्ताओं को किस प्रकार के निर्देश देते हैं ...ये सोचने की बात है ...भारत बंद का क्या असर होगा ये तो भविष्य ही बतायेगा लेकिन जो राष्ट्रीय नुक्सान हुआ है उसकी भरपाई कौन करेगा ? शायद आप और हम .........
ज़रा सोचिये !!

Sunday, July 4, 2010

कहाँ है लोकतंत्र ? ज़रा सोचिये !!

ऐसा लगता है की जनतंत्र-लोकतंत्र या कहो की प्रजातंत्र केवल संविधान में ही है ....हो सकता है कि हमारी अपेक्षाएं बहुत ज्यादा हो गई हैं.. या हमारी स्वार्थपरता ? सत्ता में बैठे लोग भी तो हमारे बीच से ही गए हैं ....उनको दोष दें या आईने में देखें ..
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दो दिन पहले यात्रा से लौटना था प्राइवेट बस मिली .एक बदतमीज से conductor ने पूरी टिकट के रुपये वसूल कर लिए ...ये तो उसका अधिकार भी है भाई !!! खैर , आधे से ज्यादा रास्ता तै करने के बाद एक बस स्टैंड पर उसने कहा की भाई-लोगों यहाँ कुछ देर रुकना होगा ...आगे जाने वाली सवारियां ...हमारे ही मालिक की दूसरी बस मैं बैठने का कष्ट करिए . सवारियां क्या करती ..रुपये देकर गुलाम हो गए सब ...न तो टिकेट न कोई प्रमाण ..फिर जल्दी घर पहुंचना. सभी लोग दूसरी बस में बैठ गए..पहले वाली बस जहां से आई थी वहाँ वापस चली गई ..नई बस के चलने के इंतज़ार में यात्री परेशान...भयंकर गर्मी .सब बेबस ...ड्राईवर ने कहा बस का टाइम १ घंटे बाद है ...आप को ले चलेंगे ...लेकिन सब्र करो ...हमने कहा आगे की यात्रा के पैसे हमें दे दो ...हमने आपसे कोई पैसे नहीं लिए तो कहाँ से देंगे ...कितनी सफाई से जवाब दिया उन्होंने ....उसने कहा हम आपको आपके गंतव्य पर छोड़ देंगे.
सब पढ़े -लिखे उनके सामने बौने लग रहे थे,कोई क़ानून-कायदे वहाँ लागू नहीं होते ...या तो दुबारा पैसे देकर दूसरी बस मैं बैठो .या फिर इंतज़ार... उपभोक्ता क़ानून धरे रह गए ...यहाँ गलती किसकी शायद पब्लिक की ज्यादा.. प्राइवेट बस वालों का गैंग है ,,,माथाकूट कौन करे ?
क्या प्राइवेट बस वालों को ticket नहीं देनी चाहिए ? उनको कंट्रोल करने वाला कोई नहीं क्यों की मालिक वही राजनेताओं के चमचे या फिर रिश्तेदार या फिर उनके पाले हुवे गुंडे... क्या करना चाहिए ? ज़रा सोचिये